भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
गीत✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
कुटिल नीति वालों के कारण
कितने माथा पटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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छलती आयुष्मान योजना
छह सदस्य लाएँ हम कैसे
चार लोग हैं घर में केवल
बीमारी में पास न पैसे
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एड़ा बन पेड़ा जो खाते
मस्ती में वे मटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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चाँदी के जूते के बल पर
होता है अब लेखा-जोखा
हमने देखा कंगालों को,
रोज यहाँ पर मिलता धोखा
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भोले -भाले लोगों के तो
उचित काम सब अटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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सिंहासन पर बैठे हैं जो
कभी उतरकर जब आएँगे
अपने अमले की करनी को
यहाँ सुनेंगे पछताएँगे
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सच्ची बातें कहने वाले
आँखों में क्यों खटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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कथनी- करनी में जब अंतर
समझे कौन भला लाचारी
तिकड़म का अब दौर चल रहा
मची हुई है मारा-मारी
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मिली मलाई वाली कुर्सी
नोट खूब वे झटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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धन- दौलत- पदवी के बल पर
जो समझें खुद को तूफानी
उनके कारण आज यहाँ पर
हाय योग्यता भरती पानी
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झटके का वे माल खूब अब
इधर-उधर से गटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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जो संवेदनहीन हो गए
उनसे तो भगवान बचाएँ
मानवता के सौदागर जो
अपनेपन का ढोंग रचाएँ
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सज्जन लोगों के उर अब तो
दरपन जैसे चटक रहे हैं
भ्रष्टाचारी तंत्र हो गया
पात्र यहाँ पर भटक रहे हैं।
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रचनाकार✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद- निवास'
बरेली (उत्तर प्रदेश)
मोबा.- 98379 44187
Gunjan Kamal
10-Nov-2023 05:38 AM
👏👌
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Mohammed urooj khan
07-Nov-2023 04:24 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Varsha_Upadhyay
05-Nov-2023 10:07 PM
Nice 👍🏼
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